class 10th physics chapter 2 मानव नेत्र एवं रंबिरंगा संसार | मानव नेत्र एवं रंबिरंगा संसार important question ansawer

मैट्रिक परीक्षा 2022
  • मानव नेत्र का वर्णन :- मानव नेत्र लगभग गोलाकार होता है | इसके सबसे बाहरी भाग को दृष्टि पटल कहते है | और आगे वाली भाग को कार्निया कहते है , जो आगे चलकर दो भागो में बट जाता है आयरिश पेशिया और शिल्यरिश पेशिया आयरिश रंगीन होता है जिसके बिच में एक गोलाकार छिद्र होता है जिसे पुतली कहते है | पुतली निचे मुलायम एवं अपारदर्शी पदार्थ का एक उत्तल लेंस होता है | लेंस की सबसे उपरी भाग को रेटिना कहते है जो दो प्रकार के तंतु से जुड़े होते है | छड जो प्रकाश के उत्तरदायी होते है | शंकु जो प्रकाश के रंग के लिए उत्तरदायी होते है जब नेत्र लेंस किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाती है तब उसकी सुचना छड और शंकु के द्वारा मस्तिष्क को प्राप्त होता है |

 

  • नेत्र की समंजन क्षमता :- नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण उसकी फोकस दुरी स्वत: नियंत्रित होती है | उसे ही नेत्र की समंजन क्षमता कहते है | एक स्वस्थ्य नेत्र की स्पस्ट दर्शन दुरी 25 सेमी तथा दूरदर्शन विन्दु अनंत पर होता हैं |
  • दृष्टी दोष क्या है ? ये कितने प्रकार के होते है

उत्तर जब किसी कारण वश नेत्र लेंस निकट या दूर स्थित वस्तुओ का स्पस्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाने की छमता को खो देता है | उसे दृष्टी दोष कहते है

                                                                           ये चार प्रकार के होते है

  • दृग दृष्टी दोष
  • निकट दृष्टिदोष
  • जरा दृष्टी दोष
  • अबिदुकता

 

  • दृग दृष्टि दोष :- जब किसी कारण वश नेत्र लेंस निकट स्थित वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाने की क्षमता को खो देता है उसे दृग दृष्टि दोष कहते है इस दोष में दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई पड़ती है किंतु नजदीक की वस्तु स्पष्ट दिखाई नही देती है
  • कारण:- (i) नेत्र लेंस अवश्यकता से अधिक पतला हो जाता है जिससे उसकी फोकस दुरी बढ़ जाती है

 (ii) नेत्र गोलक अवश्यकता से अधिक मोटा हो जाता है जिससे नेत्र लेंस और रेटिना की बिच की दुरी घट जाती है

  • उपचार :- इस दोष को को दूर करने के लिए उत्तल लेंस के बने चश्मे का व्यवहार किया जाता है |

निकट दृष्टि दोष क्या है ? इसके कारण एवं उपचार बतावे ?

उत्तर जब नेत्र लेंस दूर स्थित वस्तुओ का स्पस्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाने की क्षमता को खो देता है | उसे निकट दृष्टि दोष कहते है | इस दोष में निकट की वास्तु स्पस्ट दिखाई पड़ती है किंतु दूर की वास्तु स्पस्ट दिखी नही पड़ती है |

  • कारण: – (i) नेत्र लेंस आवश्यकता से अधिक मोटा हो जाता है जिससे उसकी फोकस दुरी घाट जाती है

             (ii) नेत्रगोलक आवश्यकता से अधिक मोटा हो जाता है जिससे नेत्रगोलक और रेटिना की बिच की दुरी बढ़ जाती है |

  • उपचार :- निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस के बने चश्मे का व्यवहार करना चाहिए |

 

  • जरा दृष्टिदोष क्या है ? कारण एवं उपचार :- इस प्रकार के दोष प्राय: बुढ़ापे में उत्पन्न होते है | जिसमे दूर विन्दु के साथ-साथ आँख का भी निकट विन्दु प्रभावित होती है |

 

  • कारण :- नेत्र लेंस की प्रत्यक्षता खोने तथा सिल्यरिस पेशियों की समंजन क्षमता खोने के कारण ही इस प्रकार के रोग उत्पन्न होते है |
  • उपचार :- इस दोष के उपचार के लिए बाईफोकल लेंस का व्योव्हार किया जाता है | इस चश्मे के उपरी भाग में अवतल लेंस तथा निचली भाग में उत्तल लेंस होता है |

 

  • अबिंदुक्ता क्या है ? कारण एवं उपचार :- इस दोष से पीड़ित व्यक्ति एक साथ उदग्र और क्षैतिज रेखाओ को फोकसित नही कर सकता है |
    • कारण – इस दोष के प्रमुख कारण कार्निया की वक्रता की सममिति में कमी के कारण होता है |
    • उपचार इस दोष से पीड़ित व्यक्ति का मानशिक संतुलन बिगड़ जाता है | इस दोष के उपचार के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग किया जाता है |
  • प्रिज्म :- कांच का बना हुआ वह पारदर्शी माध्ययम जिसमे पञ्च फलक होते है जो तिन आयताकार तथा दो त्रिभुजाकार होता हैं | जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म पर पड़ता है तो वह सात रंगों में विभक्त होता है |

 

  • प्रकाश के वर्ण विछेपन :- जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म पर पड़ता है तो वह सात रंगों में विभक्त होता है | इसी घटना को ही प्रकाश का वर्ण विछेपन कहा जाता है | प्रकाश के वर्ण विछेपन के फलस्वरूप सात रंगों की एक पट्टी प्राप्त होती है उसे ही वर्ण पट या स्पेक्ट्रम कहा जाता है वर्ण पट पर वर्णों का क्रम कुछ इस प्रकार से होता है |

 

  • V – VOILENT – बैगनी
  • I – INDIGO – जामुनी
  • B – BLUE – नीला
  • G – GREEN – हरा
  • Y – YELLOW – पिला
  • 0 – ORANGE – नारंगी
  • R – RED – लाल
  • प्रयोग द्वारा दिखाया गया सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते है :- सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते है इसे प्रयोग द्वारा दिखाने के लिए एक बंद कमरे में खिड़की में 1 सेमी गोल छिद्र कर देते है | जिससे सूर्य का प्रकाश कमरे के अन्दर प्रवेश कर सके अब उसके सामने एक सफ़ेद पर्दा लगा देते है | अब प्रिज्म को सूर्य के प्रकाश के समीप रखते है तो हम पाते है की पर्दे पर सात रंगों की एक पट्टी प्राप्त होती है | अत: इस प्रयोग से यह स्पष्ट होता है की सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते है |

 

  • एक प्रयोग द्वारा दिखाया गया की श्वेत प्रकाश के अवयवी वर्णों के मिलने से पुन: श्वेत वर्ण प्राप्त होता है : श्वेत प्रकाश के अवयवी वर्णों के मिलने से पुन: श्वेत वर्ण प्राप्त होता है | इसे प्रयोग द्वारा दिखने के लिए हम दो प्रिज्म P1 तथा P2 लेते है | जब प्रकाश प्रिज्म P1 पर पड़ता है तो वह सात रंगों में विभक्त होता है और जब सातों वर्ण उलटे प्रिज्म P2 पर पड़ता है तो दुसरे ओर केवल श्वेत वर्ण ही प्राप्त होता है | अत: इस प्रयोग से यह स्पष्ट होता है की श्वेत प्रकाश के अवयवी वर्णों के मिलने से पुन: श्वेत वर्ण प्राप्त होता है |

 

  • एक प्रयोग द्वारा दिखाया गया की प्रिज्म रंग उत्पन्न नहीं करता है :- प्रिज्म रंग उत्पन्न नहीं करता है | इसे प्रयोग द्वारा दिखने के लिए हम दो प्रिज्म P1 तथा P2 लेते है | दोनों प्रिज्मो को सीधा रखकर उसके बिच में एक सफ़ेद पर्दा लगा देते है जब प्रकाश प्रिज्म P1 पर पड़ता है तो पर्दे पर सात रंग प्राप्त होता है | अब पर्दे पर लाल रंग के सामने गोल छिद्र कर देते है जिससे केवल लाल वर्ण ही बाहर निकल सके जब लाल वर्ण प्रिज्म P2 पर पड़ता है तो उसके दुसरे ओर केवल लाल वर्ण ही प्राप्त होता है | अत: इस प्रयोग से यह स्पष्ट होता है की प्रिज्म रंग उत्पन्न नहीं करता है |

 

  • वर्णों के प्रकार

प्राथमिक वर्ण                                   द्वितीयक वर्ण                          संपूरक वर्ण

Primary Colour                           Secendry Colour                Seplimentry 

 

  • प्राथमिक वर्ण :- वैसे वर्ण जिनके मिलने से द्वितीयक वर्ण प्राप्त होता है उसे ही प्राथमिक वर्ण कहते है | जैसे :- लाल , हरा , इत्यादि
  • द्वितीयक वर्ण :- वैसा वर्ण जो प्राथमिक वर्णों के मिलने से बनता है उसे द्वितीयक वर्ण कहते है | जैसे लाल+हरा = पिला लाल + नीला = मैजेंटा इत्यादि
  • संपूरक वर्ण :- सभी वर्णों के मिलने से जो वर्ण बनता है उसे ही संपूरक वर्ण कहते है |
  • वर्ण त्रिभुज खीचकर प्राथमिक द्वितीयक तथा संपूरक वर्णों को दिखाइए
  • वायुमंडलीय अपवर्तन :- वायुमंडल का घनत्व भिन्न भिन्न प्रकार के होते है | पृथ्वी के समीप वाले वायुमंडल का घनत्व सबसे अधिक होता है | और उचाई बढ़ने के साथ साथ वायुमंडल का घनत्व घटते जाता है | जब प्रकाश वायुमंडल के विभिन घनत्व वाली परतो से होकर गुजरता है तो उसके दिशा में होने वाले परिवर्तन को वायुमंडलीय अपवर्तन कहते है |
  • इन्द्रधनुष किस प्रकार बनता है ? इसके प्रकार :- इन्द्रधनुष का निर्माण वायुमंडलीय अपवर्तन तथा प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण बनता है | वर्षा के पश्चात वायुमंडल में उपस्थित जल की बुँदे प्रिज्म के समान व्योव्हार करती है | जब वर्षा की किरण वर्षा के बूंदे पर पड़ती है | तो अपवर्तन के फलस्वरूप वह सात रंगों में विभक्त हो जाता है जो पृथ्वी के सामान चाप के सामान बनता है | इन्द्रधनुष दो प्रकार के होते है |
    • प्राथमिक इन्द्रधनुष
    • द्वितीयक इन्द्रधनुष
  • प्राथमिक इन्द्रधनुष :- इसके बहरी पृष्ट पर लाल वर्ण तथा आंतरिक पृष्ट पर बैगनी रंग होता है जो काफी मनमोहक होता है |
  • द्वितीयक इन्द्रधनुष :- इसके बहरी पृष्ट पर बैगनी वर्ण तथा आंतरिक पृष्ट पर लाल रंग होता है जो शीघ्र ही समाप्त हो जाता है |
  • तारे क्यों टिमटिमाते है ?

उत्तर तारो से निकलने वाली प्रकाश जब वायुमंडल के विभिन्न घनत्व वाली परतो से गुजरता है तो उसकी तीव्रता कभी बढ़ जाती है तो कभी घट जाती है यही कारण है की तारे टिमटिमाते हुए मालूम पड़ते है |

  • चन्द्रमा और ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते है

उत्तर चन्द्रमा और ग्रह की दुरी तारो की आपेक्षा पृथ्वी से काफी ही कम होती है | और चन्द्रमा और ग्रह से प्राप्त होने वाली प्रकाश की तीव्रता भी काफी ही अधिक होती है जिसके कारण उसकी तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता है यही कारण है की चन्द्रमा और ग्रह नहीं टिमटिमाते है

  • अन्तरिक्ष यात्री को आकाश का रंग काला क्यों दिखाई देता है ?

उतर जब अन्तरिक्ष यात्री अन्तरिक्ष में जाते है तो वाहा कोई भी कण न होने के कारण प्रकाश का अपवर्तन नहीं होता है |जिसके कारण अन्तरिक्ष यात्री को आकाश का रंग काला दिखाई देता है |

  • सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग लाल दिखाई देता है क्यों ?

उत्तर – जब सूर्य धरती के क्षितिज के समीप रहता है तो उससे निकलने वाली प्रकश के वर्णों को अधिक दुरी तय करनी पड़ती है | जिसके कारण कम तरंग दैर्ध वाले प्रकाश के वर्णों का प्रकीर्णन हो जाता है |किंतु लाल वर्ण का प्रकीर्णन कम होता है | यही करण है की सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग लाल दिखाई देता है |

  • क्या कारण है की अग्रिम सूर्योदय 2 मिनट पूर्व तथा विलंबित सूर्योदय 2 मिनट बाद तक दिखता है ?

उत्तर प्रकाश के वर्णों में लाल वर्ण का तरंगदैर्ध काफी ही अधिक होता है दूसरी ओर वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण उसका विचलन भी काफी कम होता है यही कारण है की अग्रिम सूर्योदय 2 मिनट पूर्व तथा विलंबित सूर्योदय 2 मिनट बाद तक दिखता है |

  • प्रकाश के प्रकीर्णन :- जब सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरण जब वायुमंडल में प्रवेश करती है तो वह वायुमंडल के कणों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है तथा पूण: उसे विभिन्न दिशाओ में उत्सर्जित कर देता है इसी घटना को ही प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है |
  • टिंडल प्रभाव :- पोलायडी विलियन के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव कहते है | टिंडल प्रभाव के कारण प्रकाश का मार्ग दिखाई पड़ता है |
  • आकाश का रंग निला क्यों दिखाई देता है ?

उत्तर सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते है जिसमे जिसमे बैगनी और नील रंग का प्रकीर्णन काफी कम होता है अत: वे वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा प्रकिर्णित हो जाते है और हमारी आँखों को बैगनी रंग की आपेक्षा नीला रंग काफी ही प्रभावशाली होते है यही कारण है की आकाश का रंग निला दिखाई देता है |

  • जब हम तीव्र प्रकाश से कम प्रकाश वाले कमरे में जाते है तो वस्तुओ को देखने में समय लगता है क्यों |

उत्तर तीव्र प्रकाश में हमारी आँखों की पुतली सिकुड़कर छोटी हो जाती है | और जब हम कम प्रकाश वाले कमरे में जाते है तो वस्तुओ को देखने के लिए पुतली को सिकुड़कर बड़ा होना आवश्यक होता है और उसे फैलने में थोडा समय लगता है यही कारण है की जब हम तीव्र प्रकाश से कम प्रकाश वाले कमरे में जाते है तो वस्तुओ को देखने में समय लगता है |

  • क्या कारण है की खतरे के संकेत के लिए लाल रंग का प्रयोग किया जाता है

उत्तर लाल वर्ण का तरंगदैर्ध्य अन्य सभी वर्णों की आपेक्षा काफी ही कम होता है जिससे वह दूर से ही दिखाई देने लगता है | दूसरी ओर लाल रंग का विचलन भी काफी कम होता है | यही कारण है की खतरे के संकेत के लिए लाल रंग का प्रयोग किया जाता है |

  • क्या कारण है की हरे प्रकाश में लाल गुलाब काला दिखाई देता है ?

उत्तर लाल गुलाब प्रकाश के लाल वर्ण को परावर्तित कर देता है | और अन्य वर्णों को अवशोषित कर लेता है जिसके कारण गुलाब लाल दिखाई देने पड़ता है | किन्तु गुलाब हरे प्रकाश में वह हरे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है जिसके कारण गुलाब काला दिखाई देने लगता है | यही कारण है की हरे प्रकाश में लाल गुलाब काला दिखाई देता है |

  • वस्तु रंगीन क्यों दिखाई पड़ती है ?

उत्तर कोई भी वस्तु प्रकाश के जिस भी रंग को प्रवार्तित करता है वह वस्तु उसी रंग की दिखाई पड़ती है उदाहरण के लिए अगर कोई वस्तु हरा दिखाई पड़ रही है तो इसका यह अर्थ है की वह वस्तु हरे वर्ण को प्रवर्तित कर सेता है तथा अन्य सभी वर्णों को अवशोषित कर देता है | इसी प्रकार अगर कोई वस्तु काला दिखाई दे रहा है तो इसका यह अर्थ है की वस्तु प्रकाश के सभी वर्णों को अवशोषित कर लिया है |

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