1. पद राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Class 10th | Class 10th Hindi 1. पद राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा full explanation

मैट्रिक परीक्षा 2022

1. पद
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा
(Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma)
जो नर दुख में दुख नहीं माने
(Jo nar dukh me dukh nahi mane)
लेखक परिचय
जन्म- 15 अप्रैल 1469 ई0, नानकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान
मृत्यु- 22 सितंबर 1539 ई0, करतारपुर
पिता- कालूचंद खत्री, माँ- तृप्ता

इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का काफी प्रयास किया, लेकिन इनका मन सांसारिक कार्य में नहीं रमा। इन्होंने हिन्दु-मुस्लिम दोनों को समान धार्मिक उपासना पर बल दिया तथा वर्णाश्रम व्यवस्था एवं कर्मकाण्ड के विरोध करके निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
‘सिख धर्म‘ के प्रवŸार्क गुरुनानक ने मक्का-मदीना तक की यात्रा की। इन्होंनें 1539 ई0 में वाहे गुरु कहते हुए भौतिक शरीर का त्याग कर दिया।

पाठ परिचय (Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma)

इस पाठ में सच्चे हृदय से राम नाम अर्थात् ईश्वर का जप करने की सलाह दी गई है तो बाह्य आडंबर, पूजा-पाठ और कर्म-काण्ड की कड़ी आलोचना की गई है। सुख-दुख में हमेशा एकसमान रहने की सलाह दी गई है।

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना ।।
पुसतक पाठ व्याकरण बखाणै संधिया करम निकाल करै।
बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।
अर्थ – गुरु नानक कहते हैं कि जो राम के नाम का स्मरण नहीं करता है, उसका संसार में आना और मानव शरीर पाना व्यर्थ चला जाता है। बिना कुछ बोले बिष का पान करता है तथा मयारूपी मृगतृष्णा में भटकता हुआ मर जाता है अर्थात् राम का गुणगान न करके मायाजाल में फँसा रहता है। शास्त्र-पुराण की चर्चा करता है, सुबह, शाम एवं दोपहर तीनों समय संध्या बंदना करता है। नानक लोगों से कहता है कि गुरु (भगवान) का भजन किए बिना व्यक्ति को संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती तथा सांसारिक मायाजाल में उलझकर रह जाना पड़ता है।

डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गबनु अति भ्रमनु करै।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि-हरि नाम सु पारि परै।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन मगन भया।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीया।

ऐसे प्राणी बाहरी दिखावा के लिए डंडा, कमंडल, शिखा, जनेऊ तथा गेरुआ वस्त्र धारण कर तीर्थ यात्रा करते रहते हैं, लकिन राम नाम का भजन किए बिना जीवन में शांति नहीं मिलती है। भगवान का नाम ले लेकर पैर पुजाते हैं। वे अपने को संत कहलाने के लिए जटा को मुकुट बनाकर, शरीर में राख लगाकर, वस्त्रों को त्यागकर नग्न हो जाते हैं। संसार में जितने जीव-जन्तु हैं, उन जीवों में जन्म लेते रहते हैं। इसलिए लेखक कहते हैं कि भगवान की कृपा को ध्यान में रखकर नानक ने राम का घोल पी लिया, ताकि असार संसार से मुक्ति मिल जाए।

जो नर दुख में दुख नहीं मानै
जो नर दुख में दुख नहीं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा।

गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं मानता है, जिसे सुख-सुविधा के प्रति कोई आसक्ति नहीं है और न ही किसी प्रकार का भय है, जो सोना को मिट्टी जैसा मानता है। जो किसी की निंदा से न तो घबड़ाता है और न ही प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित होता है। जो लाभ, मोह एवं अभिमान से परे है। जो हर्ष एवं विषाद दोनों में एक-सा रहता है, जिसके लिए मान-अपमान दोनों बराबर हैं। जो आशा-तृष्णा से मुक्त होकर सांसारिक विषय-वासनाओं से अनासक्त रहता है।

काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु कृपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिन्द सो ज्यों पानी संग पानी।।

जिसने काम-क्रोध को वश में कर लिया है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। अर्थात् जो मनुष्य राग-द्वेष, मान-अपमान, सुख-दुख, निंदा-स्तुति हर स्थिति में एक समान रहता है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म निवास करते हैं।

गुरु नानक का कहना है कि जिस मनुष्य पर ईश्वर की कृपा होती है, वह सांसारिक विषय-वासनाओं से स्वतः मुक्ति पा जाता है। इसीलिए नानक ईश्वर के चिंतन में लीन होकर उस प्रभु के साथ एकाकार हो गये। यानी आत्मा परमात्मा से मिल गई, जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एकाकार हो जाता है।

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